भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण भारतीय रुपये और शेयर बाजार में गिरावट


हाल के दिनों में भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव ने न केवल क्षेत्रीय सुरक्षा पर सवाल उठाए हैं, बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी गंभीर प्रभाव डाला है। विशेष रूप से, भारतीय रुपये (INR) और शेयर बाजार में आई गिरावट ने निवेशकों और आम जनता के बीच चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। भारत द्वारा ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों पर की गई सैन्य कार्रवाई के बाद यह तनाव और बढ़ गया है। इस लेख में हम इस तनाव के कारण भारतीय रुपये और शेयर बाजार पर पड़ने वाले प्रभाव, इसके पीछे के कारण, और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
भारत-पाकिस्तान तनाव का पृष्ठभूमि
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव का इतिहास लंबा और जटिल रहा है, खासकर कश्मीर मुद्दे को लेकर। हाल ही में, अप्रैल 2025 में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले, जिसमें 26 नागरिकों की जान गई, ने दोनों देशों के बीच तनाव को चरम पर पहुंचा दिया। भारत ने इस हमले का जवाब ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के रूप में दिया, जिसमें भारतीय सेना ने पाकिस्तान और PoK में आतंकी ठिकानों को निशाना बनाया। इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने इसे ‘युद्ध की कार्रवाई’ करार देते हुए जवाबी कार्रवाई की धमकी दी। इस भूराजनीतिक अनिश्चितता ने वैश्विक और स्थानीय स्तर पर आर्थिक बाजारों को प्रभावित किया है।

भारतीय रुपये में गिरावट
भारतीय रुपये ने हाल के दिनों में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी कीमत में भारी गिरावट दर्ज की है। मई 2025 की शुरुआत में, रुपये ने 84.77 के स्तर को छुआ, जो दो साल में इसकी सबसे बड़ी एकदिवसीय गिरावट थी। कुछ विश्लेषकों के अनुसार, यह गिरावट 0.5% से 1.5% के बीच रही। इस गिरावट के पीछे कई कारण हैं:
भूराजनीतिक अनिश्चितता: भारत-पाकिस्तान तनाव ने निवेशकों में अनिश्चितता पैदा की है। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (FPI) भारतीय बाजारों से पूंजी निकालने में सतर्कता बरत रहे हैं। इस तरह की निकासी से रुपये पर दबाव बढ़ता है, क्योंकि विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है।
तेल की कीमतों में संभावित उछाल: भारत अपनी तेल आवश्यकताओं का बड़ा हिस्सा आयात करता है। यदि भारत-पाकिस्तान तनाव के कारण ऊर्जा आपूर्ति मार्गों में कोई व्यवधान होता है, तो तेल की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। यह रुपये पर अतिरिक्त दबाव डालेगा, क्योंकि आयात बिल बढ़ जाएगा।
रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने रुपये को स्थिर करने के लिए विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप किया है। हालांकि, तनाव की स्थिति में RBI का यह हस्तक्षेप सीमित प्रभाव ही डाल पा रहा है, क्योंकि वैश्विक निवेशक जोखिम से बचने की रणनीति अपना रहे हैं।
पाकिस्तान की तुलना में भारत की स्थिरता: मूडीज जैसे वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने कहा है कि भारत की मैक्रोइकॉनमिक स्थिति पाकिस्तान की तुलना में अधिक स्थिर है। फिर भी, बढ़ते तनाव ने रुपये को अस्थायी रूप से कमजोर किया है।
शेयर बाजार में गिरावट
भारतीय शेयर बाजार, विशेष रूप से BSE सेंसेक्स और NSE निफ्टी, ने भी इस तनाव के कारण अस्थिरता का सामना किया है। मई 2025 में, सेंसेक्स 412 अंक गिरकर 80,335 पर और निफ्टी 141 अंक गिरकर 24,274 पर बंद हुआ। इसके अलावा, मिडकैप और स्मॉलकैप इंडेक्स में 2-3% की गिरावट दर्ज की गई। इस गिरावट के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

निवेशकों में घबराहट: पहलगाम हमले और उसके बाद की सैन्य कार्रवाइयों ने निवेशकों में डर पैदा किया। कई निवेशकों ने जोखिम से बचने के लिए अपनी होल्डिंग्स को कम किया, जिससे बाजार में बिकवाली का दबाव बढ़ा।
क्षेत्रीय प्रभाव: कुछ क्षेत्रों, जैसे बैंकिंग, पर्यटन, और एविएशन, पर तनाव का अधिक प्रभाव पड़ा। उदाहरण के लिए, निफ्टी PSU बैंक इंडेक्स में 4.8% की गिरावट आई, और बैंक ऑफ बड़ौदा जैसे शेयरों में 10.9% तक की कमी दर्ज की गई। इसके अलावा, पाकिस्तान द्वारा भारतीय विमानों के लिए हवाई क्षेत्र बंद करने से एविएशन क्षेत्र को नुकसान हुआ।
वैश्विक बाजारों का प्रभाव: भारत-पाकिस्तान तनाव ने वैश्विक निवेशकों को भी प्रभावित किया है। वैश्विक इक्विटी बाजार, जो पहले से ही व्यापार युद्धों और संरक्षणवाद से प्रभावित हैं, इस क्षेत्रीय तनाव के कारण और अस्थिर हो गए हैं।
ऐतिहासिक रुझान: Anand Rathi जैसे विश्लेषकों के अनुसार, भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान भारतीय शेयर बाजार में औसतन 5-10% की गिरावट देखी गई है। हालांकि, 2001 के संसद हमले को छोड़कर, बाजार में 2% से अधिक की गिरावट दुर्लभ रही है।
पाकिस्तान की स्थिति
पाकिस्तान का शेयर बाजार और मुद्रा भारतीय बाजार की तुलना में कहीं अधिक प्रभावित हुए हैं। KSE-100 इंडेक्स में 5-7% की गिरावट दर्ज की गई, जो अप्रैल 2025 के बाद से लगभग 4% की कमी को दर्शाता है। पाकिस्तानी रुपये पर भी दबाव बढ़ा है, और मूडीज ने चेतावनी दी है कि तनाव का पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इसके पीछे पाकिस्तान की आर्थिक कमजोरी, उच्च मुद्रास्फीति, और IMF ऋणों पर निर्भरता जैसे कारक हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इतिहास बताता है कि भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान भारतीय शेयर बाजार में अल्पकालिक गिरावट देखी जाती है, लेकिन बाजार जल्द ही स्थिर हो जाता है। उदाहरण के लिए:
कारगिल युद्ध (1999): निफ्टी में केवल 0.8% की गिरावट आई, और युद्ध के दौरान बाजार में 33% की वृद्धि दर्ज की गई।
संसद हमला (2001): बाजार में 13.9% की गिरावट आई, लेकिन यह वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण थी।
उरी हमला (2016): निफ्टी में 2.1% की कमी आई, लेकिन बाजार जल्द ही उबर गया।
पुलवामा हमला (2019): बाजार में 0.2% की गिरावट के बाद तेजी से रिकवरी हुई।
ये रुझान दर्शाते हैं कि भारतीय बाजार भूराजनीतिक तनावों के प्रति लचीला रहा है, मुख्य रूप से मजबूत घरेलू अर्थव्यवस्था और विदेशी निवेश के कारण।
निवेशकों के लिए सलाह
विश्लेषकों का मानना है कि निवेशकों को घबराहट में निर्णय लेने से बचना चाहिए। निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
लंबी अवधि की रणनीति: दीर्घकालिक निवेशकों को बैंकिंग, बिजली, और रक्षा जैसे क्षेत्रों में निवेश पर ध्यान देना चाहिए, जहां सरकारी पूंजीगत व्यय से वृद्धि की संभावना है।
खरीदारी का अवसर: ऐतिहासिक रुझानों को देखते हुए, बाजार में गिरावट को ‘खरीदारी का अवसर’ माना जा सकता है।
जोखिम प्रबंधन: निवेशकों को 65:35:20 (65% इक्विटी, 35% डेट, 20% लिक्विडिटी) जैसी रणनीति अपनानी चाहिए।
भविष्य की संभावनाएं
वर्तमान में, बाजार विश्लेषकों का मानना है कि पूर्ण पैमाने पर युद्ध की संभावना कम है। यदि तनाव नियंत्रित रहता है, तो भारतीय बाजार और रुपये में जल्द ही स्थिरता आ सकती है। हालांकि, यदि स्थिति और बिगड़ती है, तो बाजार में 5-10% की और गिरावट संभव है। वैश्विक शक्तियों, जैसे अमेरिका और चीन, की मध्यस्थता भी तनाव को कम करने में महत्वपूर्ण हो सकती है।
निष्कर्ष
भारत-पाकिस्तान तनाव ने भारतीय रुपये और शेयर बाजार पर अल्पकालिक दबाव डाला है, लेकिन ऐतिहासिक रुझान और भारत की मजबूत आर्थिक स्थिति यह संकेत देती है कि बाजार जल्द ही उबर सकता है। निवेशकों को सतर्क रहते हुए दीर्घकालिक रणनीति पर ध्यान देना चाहिए। साथ ही, सरकार और वैश्विक समुदाय को तनाव को कम करने के लिए कूटनीतिक प्रयास तेज करने होंगे, ताकि क्षेत्रीय और वैश्विक आर्थिक स्थिरता बनी रहे। 

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